गीत कितना अजब संग्राम है
हर क्षण पराजय हो रही पर
जीतने का नाम है
कितना अजब संग्राम है.
इस जन्म की सौगन्ध हम
भूखे लड़े हैं भूख से.
तन में अगन, मन में अगन,
फिर भी जुड़े हैं धूप से.
खाई बनाकर पाटना,
दुख से दुखों को काटना
कितना निरर्थक काम है.
कितना अजब संग्राम है.
जल की सतह पर सिल गये,
हल्की हवा से हिल गये.
कीचड़ भरे संसार में,
जलजात जैसे खिल गये.
जल से न ऊँचे जा सकें,
जल से न नीचे आ सकें
कितना विवश विश्राम है.
कितना अजब संग्राम है.
कुछ दर्द की गरिमा बढ़े,
आँसू पिये हँसते रहे.
विद्रोह नगरों से किया,
वीरान में बसते रहे.
कुण्डल कवच के दान का,
या कर्ण के अभियान का
कितना दुखद परिणाम है.
कितना अजब संग्राम है.
5 Comments:
बहुत बढिया लिखा है ..
संजीव जी मेरे ब्लॉग का अनुसरण करके merii hauslaa -afjaaii का shukriyaa
sharmaa जी का ये गीत तो sachmuch bhaarii है .....kitnaa azab sangraam है ...?
राखी के अवसर पर आपको ढेर सारी शुभकामनायें।
बहुत खुब लिखा है आपने। बधाई
कुण्डल कवच के दान का,
या कर्ण के अभियान का
कितना दुखद परिणाम है.
कितना अजब संग्राम है.
bahut sundar
कितना अजब संग्राम है.
bahut sundar.
आनन्दशर्मा जी को नमन है !
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