Sunday, September 17, 2006

गीत कितना अजब संग्राम है


अजब संग्राम है.कितना

हर क्षण पराजय हो रही पर
जीतने का नाम है
कितना अजब संग्राम है.

इस जन्म की सौगन्ध हम
भूखे लड़े हैं भूख से.
तन में अगन, मन में अगन,
फिर भी जुड़े हैं धूप से.

खाई बनाकर पाटना,
दुख से दुखों को काटना
कितना निरर्थक काम है.

कितना अजब संग्राम है.

जल की सतह पर सिल गये,
हल्की हवा से हिल गये.
कीचड़ भरे संसार में,
जलजात जैसे खिल गये.

जल से न ऊँचे जा सकें,
जल से न नीचे आ सकें
कितना विवश विश्राम है.
कितना अजब संग्राम है.

कुछ दर्द की गरिमा बढ़े,
आँसू पिये हँसते रहे.
विद्रोह नगरों से किया,
वीरान में बसते रहे.

कुण्डल कवच के दान का,
या कर्ण के अभियान का
कितना दुखद परिणाम है.
कितना अजब संग्राम है.

5 Comments:

At 1:45 AM, Blogger संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है ..

 
At 4:24 AM, Blogger alka mishra said...

संजीव जी मेरे ब्लॉग का अनुसरण करके merii hauslaa -afjaaii का shukriyaa
sharmaa जी का ये गीत तो sachmuch bhaarii है .....kitnaa azab sangraam है ...?

 
At 10:57 PM, Blogger Mithilesh dubey said...

राखी के अवसर पर आपको ढेर सारी शुभकामनायें।

बहुत खुब लिखा है आपने। बधाई

 
At 6:04 AM, Blogger Naveen Tyagi said...

कुण्डल कवच के दान का,
या कर्ण के अभियान का
कितना दुखद परिणाम है.
कितना अजब संग्राम है.
bahut sundar

 
At 5:28 AM, Blogger Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

कितना अजब संग्राम है.
bahut sundar.

आनन्दशर्मा जी को नमन है !

 

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