Sunday, September 17, 2006

यह नगर व्यापारियों का है


घूमकर सारा नगर कितना थका,
गीत मेरा बोल बस इतना सका-
यह नगर ! यह नगर व्यापारियों का है.

यंत्रवत सी ज़िन्दगी की यंत्रणा
रोज करती है धुंऍ से मंत्रणा.
और सबसे प्यार केवल धूप से
आदमी करता यहाँ पर है घृणा.

शाम तक का श्रम, पसीना आ गया,
और यह अहसास मन पर छा गया,
यह नगर ! यह नगर लाचारियों का है.

हर संगठन अलगाव बोने के लिये ,
दशरथ नमन युवराज होने के लिये.
ये संस्थाऍं धर्म या साहित्य की,
बस काम आती दाग़ धोने के लिये.

ऍक टूटा स्वप्न, आखिर हारकर,
भोर में बतला गया मन मारकर-
यह नगर ! यह नगर संसारियों का है.

ये लोग, जैसे लूटकर कुछ, भागते,
अपराधियों से उम्र भर फिर जागते.
क्रूरता आतंक वाली गोलियाँ,
असहाय लोगों पर अचानक दागते.

थपथपाकर द्वार, यह बोली हवा,
ऐतिहासिक सत्य, मत इसको दबा-
यह नगर ! यह नगर तातारियों का है.

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