Thursday, September 14, 2006

हाँ महासिन्धु होगे खारे जल के


गंगाजल वाले कलश नहीं हो तुम,
हाँ महासिन्धु होगे खारे जल के.

ये अधर हमारे रेगिस्तानी हैं,
पर रामानुज जैसे अभिमानी हैं.
ओ क्रुद्ध परशुधर तुमसे ही हमको,
सारी भूलें स्वीकार करानी हैं.

गम्भीर नहीं तुम नीली झीलों से,
आधे जल वाली गागर से छलके.
हाँ महासिन्धु होगे खारे जल के.

कन्धों पर यात्रा हमें नहीं करनी,
अपनी झमता से वैतरणी तरनी.
वंचित रहना स्वीकार हमें लेकिन,
भिक्षा के यश से गोद नहीं भरनी.

तुम कल्पमेघ तो हमको नहीं लगे,
गर्जन वाले बस बादल हो हलके.
हाँ महासिन्धु होगे खारे जल के.

तुम आयोजक आँधी तूफ़ानों के,
हम सहज सरल नाविक जलयानों के.
हर भँवर फँसी पीढ़ी दुहरायेगी,
आख्यान हमारे ही अभियानों के.

जब-जब भी जलते अधरों पर साधे,
मायावी ओसकणों से तुम ढलके.
हाँ महासिन्धु होगे खारे जल के.

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